मोहन भागवत ओर मुस्लिम बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं से लगातार भेंटवार्ता से कुछ लोग क्यों चिन्तित हें।

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मोहन भागवत ओर मुस्लिम बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं से लगातार भेंटवार्ता से कुछ लोग क्यों चिन्तित हें।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (रा स स) के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत आजकल मुस्लिम बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं से लगातार भेंटवार्ता कर रहे हैं। रा स स प्रमुख देश में साम्प्रदायिक वातवर्ण को मजबूत करने के लिए वार्तालाप कर रहे हैं। उन्होंने पहले दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीरउद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और कारोबारी सईद शेरवानी जैसे प्रबुद्ध मुसलमानों से भेंटवार्ता की। ये सब मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नाम हैं। शाहिद सिद्दीकी उर्दू समाचार पत्र नई दुनिया के संपादक भी हैं। डॉ. मोहन भागवत ने इनके बाद देश के हजारों इमामों की नुमाइंदगी करने वाले संगठन ‘अखिल भारतीय इमाम संगठन’ के प्रमुख मौलाना उमेर अहमद इलियासी से भी भेंटवार्ता की। इन भेंटवार्ताओं के परिणाम सकारात्मक आए हैं। इस पहल का स्वागत भी हो रहा है। मोहन भागवत ने इन्हें साफ तौर पर कहा कि “हिन्दुओं को स्वाभाविक रूप से यह अपमानजनक लगता है जब उन्हें काफिर कहा जाता है।

मोहन भागवत ओर मौलाना इलियासी के बीच करीब एक घंटे से भी अधिक समय तक भेंटवार्ता हुई।

“मुस्लिम धर्म ज्ञानियों ने स्वीकार किया कि हिन्दू को काफिर कहना एक गलत बात है। मोहन भागवत ने मौलाना इलियासी के बीच करीब एक घंटे से भी अधिक समय तक भेंटवार्ता की। मोहन भागवत के साथ संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी कृष्ण गोपाल, रामलाल जी और इंद्रेश कुमार जी भी थे। राम लाल जी पहले भाजपा के संगठनात्मक सचिव थे जबकि इन्द्रेश कुमार जी पूरे भारत के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक हैं। मौलाना उमेर इलियासी इंडिया गेट के समीप प्रसिद्ध गोल मस्जिद के इमाम हैं। वे इस्लाम के प्रकांड विद्वान तो हैं ही। विशेष बात यह है कि उन्होंने अन्य धर्मों का भी गहन अध्ययन किया है। उनके जीवन का अटूट हिस्सा है “सर्वधर्म समभाव”। वे सभी प्रकार के धर्मों का सम्मान करने में विश्वास करते हैं।

मोहन भागवत जिस गोल मस्जिद मे गए यहाँ पर स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी भी जाती थीं।

मोहन भागवत के गोल मस्जिद में आने पर हैरान होने वालों को शायद जानकारी न हो कि इसी मस्जिद में श्रीमती इंदिरा गांधी उस समय भी आती थीं जब वह भारत देश की प्रधानमंत्री थीं। उस समय इस मस्जिद के इमाम स्वर्गीय मौलाना जमील इलियासी थे। मौलाना उमेर इलियासी उन्ही के सुपुत्र हें। मौलाना जमील इलियासी को इंडिया गेट का फकीर भी कहा जाता था। शायद इसलिए क्योंकि गोल मस्जिद इंडिया गेट से चंद कदमों की दूरी पर है। उन्होंने गोल मस्जिद में प्रत्येक फकीर या भूखे मनुष्य  के लिए भोजन की व्यवस्था की परंपरा आरम्भ की थी। उसी परंपरा को मौलाना उमेर इलियासी ने अपने पिता के 2010 में स्वर्गवास के बाद जारी रखा हुआ हे।

इस्लाम धर्म ज्ञानियों से मोहन भागवत की भेंटवार्ताओं का स्वागत किया जाना चाहिए, मौलाना उमेर इलियासी।

मौलाना उमेर इलियासी का कहना हैं कि उनके पूर्वज भी हिन्दू थे। वे तो यहां तक कहते हैं कि वे भगवान श्री कृष्ण के वंशज हैं। उनका परिवार करीब दो-ढाई सौ साल पहले इस्लाम स्वीकार कर चुका है। वे मानते हैं कि इस्लाम धर्म का मार्ग सत्य, शांति और भाई चारे की तरफ लेकर जाता है। इस्लाम में किसी के लिए कोई नफरत का भाव नहीं है। इस्लाम समता के अधिकार के लिए खड़ा होता है। देखिए किसी भी समस्या का समाधान संवाद और आपसी बातचीत से ही सम्भव है। किसी जटिल समस्या का समाधान हल युद्ध से तो कभी नहीं हो सकता। इस आलोक में अगर संघ प्रमुख मोहन भागवत मुसलमानों के विशेष  और प्रभावशाली प्रतिनिधियों से मिल रहे हैं तो इसका स्वागत होना चाहिए, क्योंकि यह ही देशहित में है। पर कुछ अज्ञानी लोग ये छोटी सी बात भी समझने के लिए राजी नहीं हैं। उन्हें तो हर बात पर गलती निकालने का मानो एक मानसिक रोग हो गया है।

सभी भारतीयों का डीएनए एक संघ प्रमुख मोहन भागवत।

मोहन भागवत का कहना हैं कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है। चाहे वे किसी भी धर्म के हों। इसमें उन्होंने क्या गलत कह दिया?  कुछ समय पहले उन्होंने यह कहा था की भारत मे हिंदू-मुस्लिम एकता मे कोई संदेह नहीं है, क्योंकि वे आज भी अलग-अलग नहीं, आपितु पहले से एक हैं। पूजा की विधि अलग अलग होने के आधार पर भारतियों में भेद नहीं किया जा सकता। कोई बता दे कि भागवत जी की बात का कहां आधार नहीं है। भारत के लगभग सभी मुसलमान पहले हिन्दू ही थे। उनककी परंपरा अब भी हिन्दू धर्म से ही जुडी हुई हैं। उन्होंने इस्लाम स्वीकार किया पर वे अपनी हिन्दू धर्म की जातियों को आज भी नहीं भूले हें। वे अब भी अपनी पूर्व की हिन्दू विवाह जाति के आधार पर ही आज भी विवाह करते हैं। अल्लामा मोहम्मद इकबाल बार-बार कहते थे कि उनके पूर्वज हिन्दू ब्राह्मण थे। अल्लामा मोहम्मद इकबाल की अपनी कश्मीरी वंशावली और कश्मीरी जड़ों पर बड़ा गर्व करते थे। अल्लामा मोहम्मद इकबाल गोत्र सप्रू था। उनके पिता भी जन्म से हिन्दू थे और उनका नाम रतन लाल सप्रू था। इनका परिवार अपनी जड़ें बीरबल नामक हिन्दू पूर्वज के साथ जोड़ता था। अल्लामा मोहम्मद इकबाल का परिवार बाद में स्यालकोट पाकिस्तान चला गया था।

असदुद्दीन ओवैसी को मुसलमान ज्ञानियों ओर मोहन भागवत की भेंटवार्ता एक षड्यंत्र लगता हे।

अब इस कुछ इस प्रकार के तत्वों के बारे मे क्या लिखा जाए। मोहन भागवत की ओर से की जा रही बैठकों से एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी आग-बबूला हैं। वे कहते हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा पूरा विश्व जनता है और आप जाकर उनसे मिलते हैं। ”ये जो तबका है कि जो खुद को ज्ञानी समझता है। उनका सत्य से कोई सम्बंधताल्लुक नहीं है। देश मे क्या हो रहा है, उन्हें जानकारी नहीं है। आराम से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और आप आरएसएस प्रमुख से मिलते हैं। ये आपका लोकतांत्रिक अधिकार है। मैं प्रश्न नहीं उठा रहा परन्तु फिर आपका भी अधिकार नहीं है मुझसे प्रश्न  करने का।” इसका अर्थ यह हे कि ओवैसी निर्णय ले चुके हैं कि वे आग को बुझने नहीं देंगे। ये किसी राजनेतिक नेता को शोभा नहीं देता।

मोहन भागवत के प्रयासों को कुछ चिर असंतुष्ट तत्व षड्यंत्र की दृष्टि से देख रहे हैं।

ओवैसी साहब बहुत समझदारी से बयानबाजी करते हैं। मोहन भागवत कह चुके हैं कि भीड़ द्वारा पीट-पीटकर की जाने वाली हत्याओं ( मॉब लिंचिंग) में भाग लेने वाले लोग हिंदुत्व के विरुद्ध है। यानी उन्होंने सीधा सीधा मॉब लींचिंग का विरोध किया है। परन्तु ओवैसी संघ प्रमुख के इस बयान के लिए उनकी प्रशंसा करने से बच जाते हैं। इसमे कोई संशय नहीं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि मोहन भागवत के प्रयासों को कुछ चिर असंतुष्ट तत्व षड्यंत्र की दृष्टि से देख रहे हैं। उन्हें सकारात्मक व्योहार अपनाना होगा। उन्हें अपने गिरेबान में भी झांक लेना चाहिए कि क्या वे लगातार आक्रामक रहकर अपने समाज का भला कर रहे हैं? उन्हें बातचीत के मार्ग सदेव खुले रखने होंगे। समाज में समरसता के लिए स्थान रखना होगा। भारत को आगे बढ़ाने के लिए अब हम छोटे-मोटे विवादों में उलझे नहीं रह सकते। भारत की प्राथमिकता विषव की आर्थिक महाशक्ति बनना है। देश को अब अर्जुन दृष्टि अपनानी ही होगी। भारत को ओवैसी जैसे अंधकार की दुनिया में रहने वाले मुसलमानों की तुलना में मौलाना उमेर इलियासी जैसे प्रकाशयुक्त विचारधारा वाले मुसलमानों की आवश्यकता है।

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