कहानी, सेठ जमींदार ओर ज़मीनदार का एक छोटा सा बच्चा ओर उसकी चतुराई।

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कहानी, सेठ जमींदार ओर ज़मीनदार का एक छोटा सा बच्चा ओर उसकी चतुराई।
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एक जमींदार था, एक दिन वह अपने देश के बहुत बड़े सेठ के पास गया और बोला- ‘सेठ जी, मैं आपसे कर्जा  मांगने आया हूं। कृपा कर आप मुझे पांच हजार रुपये उधार दें दें। मैं पांच वर्ष के अंदर आपके पाँच रुपये सूद सहित वापस कर दूंगा।’ सेठ ने उसकी बात पर विश्‍वास कर उसे पांच हजार रुपये उधार दे दिए। पांच वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी जब उस गरीब जमींदार ने सेठ के पांच हजार रुपये नहीं लौटाये तब सेठ को मजबूर होकर गरीब जमींदार के घर जाना पड़ा। परन्तु वहां वह जमींदार नहीं मिला। जब भी सेठ जमींदार के वहां जाता जमींदार बहाना बना कर उसे सेठ को वापस भेज देता था। एक दिन फिर सेठ उस जमींदार के घर गया। वहां और कोई तो नहीं दिखा, एक छोटा सा बच्चा बेटा मिला। राजा ने उसी छोटे बच्चे से पूछा- ‘तुम्‍हारे पिता जी कहा हैं ?’

छोटा बच्चा बोला – ‘पि‍ताजी स्‍वर्ग का पानी रोकने के लिए गये हैं।’

सेठ ने फिर पूछा- ‘तुम्‍हारा दूसरा भाई कहां गया है ?’

छोटा बच्चा बोला – ‘बगेर झगड़े के साथ झगड़ा करने गया हैं।’

सेठ की समझ उस छोटे बच्चे की बातों में एक भी बात समझ नहीं आ रही थी। इसलिए सेठ फिर पूछता है- ‘तुम्‍हारी माता जी कहां है ?’

छोटा बच्चा बोला – ‘माताजी एक के दो करने गई हुई है।’

सेठ छोटे बच्चे के इन उल्टे सीधे प्रश्नो के उत्तर से क्रोध मे लाल पीला हो गया। क्रोध मे आकार सेठ ने पूछा – ‘और प्यारे छोटे से बच्चे तुम यहां पर बेठे-बेठे क्‍या कर रहे हो ?’

छोटा बच्चा हँसते हँसते बोला की  ‘मैं घर पर बेठे-बेठे संसार देख रहा हूँ।’

सेठ को समझ आ गया कि यह छोटा सा बच्चा उसके किसी भी प्रशन का सीधा उत्तर नहीं देगा। इसलिए सेठ को अब इससे इन बातों का अर्थ जानने के लिए प्‍यार से पूछना पड़ेगा। सेठ ने चेहरे पर प्‍यार से मुस्‍कान लाकर फिर पूछा- ‘बेटा, तुमने जो अभी-अभी मेरे प्रश्नो के उत्तर दिये हें, इन का अर्थ क्‍या है ? मैं तुम्‍हारी एक भी बात का अर्थ  नहीं समझ पाया हूँ। तुम मुझे सीधे-सीधे इन उत्तरों का अर्थ समझाओ।’

छोटे से बच्चे ने ने भी मुस्‍करा कर सेठ से पूछा – ‘यदि  मैं सभी बातों का अर्थ आपको समझा दूं तो आप मुझे उपहार मे क्‍या देंगे ?’

सेठ के मन में सारी बातों का अर्थ जानने की तीव्र उत्‍कंठा हो रही थी। सेठ बोला- ‘जो तुम मँगोगे , वही मिलेगा।’

तब वह छोटा सा बच्चा बोला  ‘यदि आप मेरे पिताजी का जितना भी कर्जा हें सारा माफ कर देंगे तो मैं आपको सारी बातों का अर्थ बता दूँगा।’

सेठ ने भी तुरन्त उत्तर दिया कि – ‘ अच्छी बात है, मैं तुम्‍हारे पिताजी का मेरे से लिया हुआ सारा कर्ज माफ कर दूंगा। अब तुम सारी बातों का अर्थ समझा दो।’

वह छोटा सा बच्चा बोला – ‘सेठ जी , आज मैं आपको सारी बातों का अर्थ नहीं समझा सकता हूँ। कृपा कर के आप कल फिर आयें। ओर कल मैं अवश्य बता दूँगा।’

सेठ अगले दिन फिर उस जमींदार के घर गया। आज वहां घर के सभी लोग उपसिथित  थे। वह जमीदार , जमींदार की पत्‍नी, जमीदार का बड़ा बेटा और जमींदार का वह छोटा सा बच्चा भी। सेठ को देखते ही उसी छोटे बच्चे ने पूछा – ‘सेठ जी , आपको अपना दिया हुआ वचन याद है की नहीं ? ‘

सेठ बोला- ‘हां मुझे अच्छी तरह से याद है। तुम यदि सारी बातों का अर्थ मुझे बता दो तो मैं तुम्‍हारे पिताजी का मेरे से लिया हुआ सारा कर्ज माफ करने को तेयार भी हूँ ।’

वह छोटा सा बच्चा बोला – ‘सबसे पहले मैंने यह कहा था कि पिताजी स्‍वर्ग का जल रोकने गये हैं, इसका अर्थ था कि कल वर्षा हो रही थी और हमारे जानवरो के घर की छत से पानी टपक रहा था। मेरे पिताजी पानी रोकने के लिए छत को ठीक करने कि कोशिस मे लगे थे। इसका अर्थ यह हुआ कि वर्षा का पानी आकाश से ही गिरता है और हम लोग तो यही मानते हैं कि आसमान में ही स्‍वर्ग है ओर वर्षा स्वर्ग का जल हे । पहली बात का अर्थ यही था। दूसरी बात मैंने बताई थी कि मेरा बड़ा भाई बगेर झगड़े के झगड़ा करने गये है। इसका अर्थ था कि वे खेत के चारों ओर कंटीले पेड़ों के टहनियों को बाड़ बंदी करने गया था ओर जो कंटीले पेड़ों की टहनीय कटेगा उन्हे खेत के चारों ओर बाड़ लगाने का कम करेगा तो उसके शरीर में जहां-तहां कांटा गड़ ही जायेगा, अर्थात  झगड़ा नहीं करने पर भी झगड़ा होगा और शरीर पर खरोंचें आयेंगी। ‘

सेठ भी उसकी बातों से सहमत हो रहा था। सेठ मन-ही-मन उसकी चतुराई की प्रशंसा भी कर रहा था। सेठ ने फिर  उत्‍सुकता के साथ उस छोटे से बच्चे से पूछा- ‘और तीसरी-चौथी बात का क्या अर्थ हे बेटा ? ‘

छोटा सा बच्चा बोला – ‘सेठ जी, तीसरी बात जो मैंने कही थी कि माता जी एक से दो करने गई है। इसका अर्थ था कि माता जी अरहर की दाल को पिसवाने अर्थात दल का एक का दो टुकड़े करने गई है। अगर साबुत दाल को पीसा जाये तो एक दाने का दो भाग हो जाता है। अर्थात इसी को एक का दो करना कहते हे । अब रही चौथी बात तो उस समय मैं चावल खा रहा था और चावल के दाने चबा चबा कर खा रहा था। जब चावल को पकाया जाता हे तो पूरे चावल के पतीले को हिला कर एक दाने को पूरे पतीले से निकाल कर जांच की जाती हे की चावल पाक गया हे की नहीं। चावल की भरी थाली का अर्थ हे संसार ओर मे उसे देख रहा था ओर खा रहा था, इसका अर्थ हे की चावलों का संसार देख रहा था। इतना कह कर वह छोटा सा बच्चा चुप हो गया। 

सेठ को अब सारी बातों का अर्थ समझ चुका था, उनको छोटे से बच्चे की बुद्धिमानी भरी बातों ने आश्‍चर्य में डाल दिया था। सेठ ने कहा कि बेटा तुम बहुत चतुर हो परन्तु मुझे एक बात अभी समझ नहीं आई यह तो तुम कल भी बता सकते थे फिर आज क्यों बुलाया हे। 

वह छोटा सा बच्चा मुसकुराते हुए सेठ से बोला – ‘ मैं तो बता ही चुका हूं कि कल जब आप आये थे तो मैं उस समय चावल खा रहा था। यदि मैं आपको अपनी बातों का अर्थ समझाने लगता तो, मे चावल केसे खाता उस समय थाली मे गर्म गर्म खाना था ओर मुझे भूख भी बहुत लगी थी। उस समय घर में परिवार का कोई सदस्य भी नहीं था, ओर मैं अपने परिवार के लोगो को बताता कि सेठ ने सभी कर्ज़ माफ कर दिया है तो ये सब मेरी बात पर विश्‍वास नहीं करते। आज आपने परिवार के सदस्यों के सामने स्वीकार भी किया ओर कहा भी आपने सारा कर्ज़ माफ कर दिया है, अब सब परिवार को विश्‍वास हो जायेगा, ओर इसी मे मेरी प्रसन्नता हे। ‘

सेठ छोटे से बच्चे कि बाते सुनकर बहुत ही प्रसन्‍न हुआ ओर, उसने अपने गले से एल मोतियों की माला निकाल उसे देते हुए कहा- ‘बेटा, यह लो आपकी चतुराई का एक ओर पुरस्‍कार ! तुम्‍हारे पिताजी का सारा कर्ज़ तो मैं माफ कर चुका हूं।

इतना कहकर सेठ ने उस छोटे से बच्चे को आशीर्वाद देकर अपने बंगले कि ओर चला दिया । बच्चे के परिवारवालों ने बड़ी प्रसन्नता से उसे अपने गले लगा लिया।

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