पंजाब मे प्रसिद्ध गायक सिद्धू मूसेवाला की निर्मम हत्या को गंभीरता से विचार कर नए कानून ओर तुरन्त अध्यादेश लाने की आवश्यकता।
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पंजाब में दिन दहाड़े लोकप्रिय पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद सुरक्षा के सभी प्रकार की घोषणाओं की पोल खुल गई है। हालांकि हत्याकांड को आपसी गैंगवार से जोड़कर देखा जा रहा है। परन्तु इससे बड़ा प्रश्न यह कि ‘उड़ता पंजाब’ क्या हत्यारा पंजाब भी बनने जा रहा है? इस हत्याकांड को कतई साधारण नहीं कहा जा सकता। जिस तरह विदेश और जेल में बैठे गैंगस्टर ताल ठोंककर और फेसबुक पेज पर हत्या की जिम्मेदारी ले रहे हैं, उससे कई प्रकार के प्रश्न और बड़ी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। मजबूत साइबर प्रणाली के दावों के बावजूद जेल के अन्दर से ही गैंग ऑपरेट करना शर्मनाक और बड़ा प्रश्न है।
इस घटना से सिद्ध होता है कि कहीं न कहीं यह खुफिया और साइबर तंत्र की बहुत बड़ी असफलता है। विदेश से धमकी देना या कुबूलनामा थोड़ा समझ भी आता है। परन्तु राजस्थान के अजमेर जेल में बंद गैंगस्टर का नाम जुड़ना बहुत बड़ी चूक, लापरवाही या साजिश या मिलीभगत कुछ भी हो सकती है। यह हैरान और परेशान करता है। ऐसे चलन को रोकना ही होगा। पंजाब मे हुई इस हत्या की खुलेआम जवाबदारी लेना, ताल ठोंकना और सोशल मीडिया पर लिखना अपराधियों के मजबूत होते तंत्र की गवाही दे रहा है। क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है?
पंजाब के साथ साथ पूरे भारत मे कड़े और फौरन प्रभावी कानूनों की आवश्यकता है।
इस प्रकार कि घटनाओं मे सभी तत्वों की पहचान जरूरी है। हो सकता है कि अपराधी के साथ पंजाब के कुछ सरकारी कर्मचारी भी मिले हों जिनके साथ सख्त और वैसी कार्रवाई हो जो कई राज्यों में बुलडोजर के जरिए हो रही देखि जा रही है। इससे अपराधियों के साथ सरकारी कर्मचारियों में भी डर पैदा होगा। अब सत्य मे कड़े और फौरन प्रभावी कानूनों की जरूरत है। कानून को चुनौती देना अब शांति पसंद लोगों को भाता नहीं है। लेकिन यह हरकतें रुक नहीं रहीं है जो चिंता बढ़ाती हैं। इस पर पूरी गंभीरता और जिम्मेदारी से सोचने की जरूरत है।आज हम बहुत तेजी से विकसित सूचना तकनीक और साइबर प्रणाली से लैस हो रहे हैं।
नशे के लिए पहले से ही पंजाब बदनाम हे ओर एसी घटनाओं के लिए ओर बदनाम होगा।
देश मे प्रतिदिन नए से नए संसाधन और तंत्र विकसित हो रहे हैं। ऐसे कड़े सुरक्षा चक्र के दौर में अपराधियों का जेल में सुरक्षित बैठकर अपनी हरकतों को अंजाम देना बहुत यह बहुत बड़े प्रश्न का संकेत है। नशे के लिए पहले से ही बदनाम पंजाब अब फिरौती के नए तौर तरीकों को लेकर हर किसी के निशाने पर है। यदि यह भी मान लिया जाए कि सरकार नई-नई है। लेकिन चुनौतियां तो पुरानी हैं। ऐसे में एकाएक तमाम नागरिकों को दी गई सुरक्षा तुरन्त हटा लेना और दूसरे ही दिन हत्या हो जाना भी मुख्यमंत्री के गले की फांस बनेगा।
मार्च माह मे कबड्डी खिलाड़ियों की ह्त्या से पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था पर पहले भी प्रश्न उठे थे।
पंजाब मे मूसेवाला समेत 424 लोगों की पुलिस सुरक्षा उनकी हत्या से 24 घंटे पहले ही वापस ली गई थी। अब समाचारों के द्वारा जानकारी प्राप्त हो रही है कि उनको दो कमांडो दिए हुए थे। मूसेवाला की हत्या और बीते दो महीने में दो कबड्डी खिलाड़ियों की हत्या से भी पंजाब दहल उठा है। अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी संदीप सिंह नंगल की 14 मार्च को जालंधर और 5 अप्रैल को पटियाला स्थित यूनिवर्सिटी परिसर के बाहर ढाबे पर दूसरे कबड्डी खिलाड़ी धरमिंदर सिंह की हत्या से भी पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न उठे थे। निश्चित रूप से पंजाब में जो हो रहा है वह सरकार और देश के लिए अच्छा नहीं है। माना कि सरकार की नीयत ठीक है। वह पंजाब के लिए कुछ करना चाहती है।
पंजाब सरकार को केंद्र सरकार के साथ गंभीरता से काम करने की आवश्यकता।
अभी तक के प्राप्त समाचारों के अनुसार सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के मुखिया के उपदेश से हालात नहीं सुधरने वाले। सबसे पहले कठोरतम फैसले लेने होंगे। पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था, सियासत और पुराने घटनाक्रमों को देखने के बाद इतना तो समझ आता है कि सबकुछ उतना आसान नहीं है जैसा बताने का प्रयास किया जाता है। निश्चित रूप से प्रदेश की सरकार को केन्द्र के साथ इस विषय पर बहुत ही गंभीरता से मिलकर काम करना होगा और पंजाब में गैंगस्टर वार या फिरौती की घटनाओं के विरुद्ध सख्ती से काम करना होगा।
पंजाब राज्य मे हुई इस दुर्घटना को देखते हुए नया कानून ओर तुरन्त अध्यादेश लाने की आवश्यकता।
पंजाब के साथ साथ हर राज्य को कम से कम इतना तो करना ही होगा कि किसी भी राज्य कि जेल में बैठे किसी अपराधियों के नेता का नाम दोबारा न आए और जितने भी बड़े और खूंखार अपराधी जेल में हैं उनको लेकर केंद्र के साथ नई समीक्षा की जाए। ऐसे अपराधियों को संरक्षण देने और जेल से गैंग ऑपरेट करने जैसी चुनौतियों से नए साइबर युग में सख्ती से निपटना ही होगा। इसके लिए भले ही नया कानून बने या तुरंत अध्यादेश लाया जाए। ऐसे डराने या गलत संदेश देने वाले सोशल मीडिया खतों को तो तुरन्त निष्क्रिय किया ही जा सकता है। देश के किसी भी राज्य में वह भी जेल में बैठे अपराधियों के बारे में एसे समाचार विचलित करतें हैं।
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