आत्मबल द्वारा ही आतंकवाद और माओवाद पर विजय पाई जा सकती हे।
कश्मीर के चंदूरा तहसील के कर्मचारी राहुल भट्ट की हत्या से पूरा माहौल गमगीन है। हत्या के बाद पूरी घाटी आक्रोश की आग में उबल पड़ी है। चारों तरफ धरना- प्रदर्शन हो रहे हैं। आफिस में ही आतंकियों द्वारा तड़ातड़ गोलियों से किसी पंडित की हत्या कर देना नि:संदेह भारत सरकार के लिए चुनौती है, लेकिन लोगों का सड़कों पर उससे ज्यादा एक बड़ा संदेश यह भी है कि लोगों में दशकों बाद आत्मबल देखने को मिला। किसी कश्मीरी ब्राह्मण की हत्या पर लोग सड़कों पर उतरे और घाटी में इतना बड़ा प्रदर्शन होना, नई पीढ़ी के लिए तो इतिहास की बात हो गयी थी। हां, आतंकवादियों के मारे जाने पर घाटी में जरूर पत्थर चलते देखा गया। उनके शव पर लोगों द्वारा एके-47 लहराते हुए जरूर देखा जाता रहा। इस बार किसी कश्मीरी पंडित की नृशंस हत्या पर यह आक्रोश देखने को मिला है।
इस बदलाव का कारण सरकार द्वारा लोगों में आत्मबल पैदा करना हे।
इस बदलाव का कारण विशेषयज्ञ इसे भारत सरकार द्वारा लोगों में आत्मबल पैदा करने का परिणाम ही मानते हैं। इस दुखद समय के बीच एक चिंगारी दिख रही है, जिसमें भविष्य में घाटी का सुधार दिख रहा है। पिछले कुछ वर्षों से भारत सरकार द्वारा कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाने का काम किया जा रहा है। इस बीच सरकार ने उन्हें तमाम सुविधाएं भी प्रदान की है। इससे कश्मीरी पंडितों में एक आत्मबल पैदा हुआ है। उन्हें ऐसा लगने लगा है कि सरकार उनकी है। उनकी आवाज सरकार तक पहुंचती है और वे उसके समर्थन में या खिलाफ में आवाज बुलंद करने की क्षमता रखते हैं। पहले यही नहीं था। कश्मीरी पंडितों को आजादी के बाद से कभी एहसास ही नहीं हुआ कि सरकार उनकी भी है। कहीं सुनवाई उनकी भी होगी, इस कारण अपनों की मौत को भी खुद खून का घूंट पीकर रह जाने को मजबूर थे। कभी उनकी आवाज कहीं पर भी नहीं सुनाई दी और वे अपने परिवार के सदस्यों का जीवन गंवाने के बाद स्वयं की जान बचाने के लिए देश के अन्य स्थानों की ओर पलायन कर लिये।
कश्मीर की तरह बाकी राज्यो के नागरिकों मे आत्मबल पैदा करने कि आवश्यकता।
यदि हम देश में पनप रहे आतंक व माओवाद की तुलनात्मक रूप से देखें तो भारत सरकार को बस्तर, झारखंड, तेलंगाना के माओवाद क्षेत्रों में भी वही करने की जरूरत है, जो कश्मीर में कर रही है अर्थात वहां के स्थानीय लोगों में आत्मबल पैदा करना। जिस दिन सरकार वहां के स्थानीय लोगों में माओवादियों से लड़ने, उनके विरुद्ध आवाज उठाने के लिए आत्मबल पैदा करने में सफल हो गयी, उस दिन माओवाद कि समापती होना निश्चित है। पत्रकारों ने खुद उत्तर बस्तर जिले में रहकर देखा है कि वहां के माओवाद पनपने का मुख्य कारण है, वहां के लोगों में आत्मबल का न होना है। माओवादियों से प्रताड़ित होते हुए भी लोग उनके खिलाफ विरुद्ध नहीं उठाने को मजबूर हैं। यदि आप बाहर से गये हैं, कहीं भी माओवादियों द्वारा लोग प्रताड़ित हुए हैं, आप लाख कोशिश करते रहिए लेकिन कोई उनके खिलाफ मुंह खोलने को नहीं मिलेगा। इसका कारण है, मुंह खोलने का मतलब माओवादियों द्वारा हमेशा के लिए मुंह बंद कर दिया जाएगा। इस कारण लोग भाय मे हैं, मन की बात मन मे ही दबाकर, आंखों में आंसू लेकर वह कहते हैं भैया, हमें कहीं कोई भी माओवादी प्रताड़ित नहीं करता।
पत्रकारों ने कुछ क्षेत्र के नागरिकों के अन्दर आत्मबल की कमी पायी।
एक उदाहरण के तौर पर बता रहा हूं, कांकेर जिले के ही जिला मुख्यालय से लगभग 160 किमी दूर सीतरम इलाका है। वहां जाने के लिए नदी को पार करना होता है। जब 2016 में कुछ पत्रकार उस इलाके में गये। नदी पार करते ही माओवादियों के गेट और उनके स्मारकों ने स्वागत किया। जब फोटो खींच रहे थे, वहाँ के लोग आत्मबल कि कमी के कारण लोग संदेह भरी निगाहों से देख रहे थे, फिर जब उनसे बात करने की कोशिश की तो उनका यही कहना था कि भैया, यहां कोई माओवादी तंग नहीं करता। जबकि हकीकत है, उस इलाके में आज भी माओवादियों की पंचायत लगती है। उसी हिसाब से लोगों को रहना पड़ता है। पुलिस वहां के विवाद का फैसला नहीं करती। वहां के विवादों का फैसला माओवादी पंचायतों में होता है। इसका कारण है, पुलिस जब तक लोगों की सुरक्षा में पहुंचेगी तब तक माओवादियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों की हत्या कर चुके होंगे।
बाकी राज्यों मे सरकार द्वारा लोगो मे आत्मबल देने की गतिविधियां धीमी।
यदि यही लोगों को विश्वास हो जाए कि उनकी आवाज भारत सरकार तक पहुंचेगी। सरकार उनको संपूर्ण सुरक्षा देगी, माओवादी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। उस दिन से माओवादियों के विरुद्ध आवाज उठनी शुरू हो जाएगी और जिस दिन माओवादियों के खिलाफ मुंह खुलने लगे, उस दिन से उनका सफाया होना सुनिश्चित हो जाएगा। ऐसा कुछ इलाकों में धीरे-धीरे हो भी रहा है, लेकिन भारत सरकार द्वारा आत्मबल देने की गतिविधियां धीमी है। इस कारण माओवादियों क्षेत्रों के समाप्त होने की प्रक्रिया भी धीमी है। जरूरत है, लोगों में आत्मबल पैदा करने की।