जापान के नए पीएम शिगेरु इशिबा ने चीन को सबक सिखाने का बनाया न्यू प्लान, जानकर डर जाएगा ड्रैगन.
भारत के पड़ोसी देश चीन को सबक सिखाने के लिए जापान के नए पीएम शिगेरु इशिबा ने एशिया में भी नाटो जैसा एक समूह तैयार की जाने की मांग की है. लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष ने समूह द्वारा परमाणु हथियार बनाने की भी डिमांड की है. द जापान न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, शिगेरु इशिबा का कहना है कि मौजूदा वक्त में रूस, उत्तर कोरिया समेत चीन अपने परमाणु हथियारों पर जोर-शोर से काम कर रहा है. इस खतरे से निपटने के लिए हमें भी मिलकर एशियाई नाटो समूह की मदद से न्यूक्लियर बम बनाना चाहिए.
जापान और चीन के बीच कई मुद्दों को लेकर दशकों से विवाद चल रहा है.
वाशिंगटन डीसी स्थित थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट में छपे Future of Japan’s Foreign Policy के लेख में शिगेरु इशिबा ने नाटो जैसा एक समूह बनाने पर जोर दिया. इशिबा ने कहा कि उनका मकसद है कि आने वाले समय में हमारा अमेरिका से संबंध वैसा ही होना चाहिए जैसा यूएस और ब्रिटेन का है. बता दें कि जापान और चीन के बीच कई मुद्दों को लेकर दशकों से विवाद चल रहा है. वैसे नाटो समूह बनाने की मांग शिगेरु इशिबा ऐसे वक्त पर की गई है, जब जापान की सत्ता उनके हाथों में आने वाली है. उन्होंने अपने विचारों से साफ कर दिया है कि चीन को लेकर उनकी नीति पूरी तरह से आक्रामक रहने वाली है.
पूर्व में इशिबा जापान के रक्षा और कृषि मंत्री भी रह चुके हैं.
शिगेरू इशिबा जापान के नए प्रधानमंत्री बनने वाले हैं. क्योंकि उन्हें लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव में बीते शुक्रवार को जीत मिली थी. इस तरह से जो भी व्यक्ति सत्ताधारी पार्टी का अध्यक्ष बनता है वहीं देश का पीएम बनता है. बता दें कि इशिबा की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को दोनों सदनों में बहुमत हासिल है. पूर्व में इशिबा जापान के रक्षा और कृषि मंत्री भी रह चुके हैं. उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी साल 1986 में शुरू की थी और महज 29 साल में ही पहला चुनाव जीता था.
साल 1949 में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की स्थापना हुई थी.
कोल्ड वॉर के दौरान सोवियत संघ से लड़ने के लिए साल 1949 में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की स्थापना हुई थी. इसमें अमेरिका सहित 32 सदस्य देश शामिल हैं. बनने के 75 साल बाद भी ये संगठन अमेरिका-यूरोप सैन्य सहयोग का आधार बना हुआ है. इसका मुख्यालय बेल्जियम में है. ये संगठन उन देशों की युद्ध के वक्त मदद करती है, जो उनके मेंबर है.
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