स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सभी भारत वासियों को बधाई, पढ़ें कुछ भूली बिसरी यादें।
आज पूरा देश ‘स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव’ मना रहा हैं। 15 अगस्त, 1947 को भारत ने ब्रिटिश दासता की बेड़ियां काट डाली थीं। एक दिन पहले 14 अगस्त को शाम होते ही पूरे भारत से ब्रिटिश शासन का प्रतीक झंडा ‘यूनियन जैक’ उतार दिया गया। उसकी जगह तिरंगे ने ले ली। चूंकि ज्योतिषियों ने 15 अगस्त का दिन स्वतन्त्रता दिवस के स्वागत-सत्कार के अनुसार से उचित नहीं माना था, अतः इसी कारण 14 अगस्त की आधी रात को ही भारत की स्वतंत्र की घोषणा की गई थी।
सूर्यास्त होने के बाद 14 अगस्त को ब्रिटिश शासन का झंडा तारा जाने लगा था।
14 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस की तेयारी मे जब सूर्यास्त हुआ, तो देशभर में ब्रिटिश शासन का झंडा ‘यूनियन जैक’ उतारा जाने लगा। नेहरू ने माउंटबेटन की वह बात मान ली थी कि भारतीय भले ही अपना झंडा फहराने का समारोह मनाएं, लेकिन ‘यूनियन जैक’ के उतारे जाने का जश्न नहीं मनाएं ताकि अंग्रेजों को तकलीफ नहीं पहुंचे। इधर, मद्रास के नटराज मंदिर से पीतांबर और अन्य पवित्र वस्तुएं ले कर जो साधु दिल्ली आए थे, उसका भव्य जुलूस यॉर्क रोड के 17 नंबर के सादे बंगले की ओर बढ़ रहा था ताकि नेहरू को ईश्वर का आशीर्वाद दिया जा सके।
स्वतन्त्रता दिवस के दिन भी नेहरू जी के पास पाकिस्तान से हिन्दुओं पर अत्याचार के संदेश आए।
फोन द्वारा संदेश लाहौर से आया था। हिन्दू और सिख इलाकों की पानी की आपूर्ति वहां काट दी गई थी। भयानक गर्मी ने लोगों को प्यास से दीवाना कर दिया था। उनके मुहल्लों के बाहर मुसलमान टुकड़ियां हथियार ताने खड़ी थीं। पानी की एक डोल की भीख मांगने के लिए भी जो महिलाएं और बचे मुहल्ले से बाहर आ रहे थे, उन्हें बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतारा जा रहा था। कम-से-कम आधा दर्जन स्थानों पर शहर धू-धू कर जल रहा था।’ हैरान-परेशान जवाहरलाल की आवाज इतनी धीमी थी कि उनके शब्द मुश्किल से ही सुने जा सके, ‘आज रात स्वतन्त्रता दिवस के भाषण मे मैं क्या बोलूंगा?
राष्ट्रीय झंडों को स्वतन्त्रता के दिन फहराने से पहले मन्त्रोच्चार कर गंगाजल छिड़का था।
इधर, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नई दिल्ली स्थित बगीचे में स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य मे हवन हो रहा था। पंडित मन्त्रोच्चार कर रहे थे और वैदिक रीति से पूजा संपन्न हो रही थी। वहां स्वतंत्र भारत में पहली बार मंत्री पद संभालने वाले माननीय मौजूद थे। मन्त्रोच्चार के बीच सभी ने हवनकुंड की परिक्रमा की। फिर, पंडितों ने उन पर गंगाजल छिड़का और माथे पर तिलक लगाया गया। फिर एक-के-बाद-एक उन्होंने संविधान सभा के उस भव्य कक्ष में प्रवेश किया, जो राष्ट्रीय झंडों से सजी हुई थी।
स्वतन्त्रता दिवस की खुशी मे शंखनाद से पूरे भवन में को गुंजायमान किया गया था।
बारहवीं टंकार को गूंज अभी शांत हुई भी न थी कि गलियारे में खड़े एक व्यक्ति ने ऊंचे स्वतन्त्रता दिवस की खुशी मे शंखनाद से पूरे भवन में को गुंजायमान कर दिया और जनता के वे सारे प्रतनिधि अचानक उठ खड़े हुए। दुनिया की नजरों में उस शंख ध्वनि ने मानव इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्य को भारत की जमीन से विदा कर दिया। एक युग का प्रारम्भ हुआ और एक युग का अंत। दोनों नवनिर्मित राष्ट्रों (भारत और पाकिस्तान) में उस शंखनाद के साथ नई धड़कनें शुरू हो गई थीं। बड़ी बातों के अलावा छोटी-छोटी भी कई बातें थीं, जिनसे पता चल रहा था कि अंग्रेजों का राज खत्म हो गया।
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