विक्रमादित्य ओर बेताल की कहानी केसे ओर कहाँ से आरम्भ हुई।
प्राचीन काल में विक्रमादित्य नाम के एक प्रसिद्ध आदर्श राजा हुआ करते थे। अपने साहस, पराक्रम और शौर्य के लिए राजा विक्रम प्रसिद्ध थे। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा विक्रम अपनी प्राजा के जीवन के सुख दुख ज्ञात करने के लिए रात्री के पहर में भेष बदल कर नगर में घूमते थे। और दुखियों का दुख भी दूर करते थे। राजा विक्रम और बेताल की कहानियों बहुत सारी पुस्तकें और कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। विक्रमादित्य और बेताल की कहानियों छपी “बेताल पच्चीसी और “सिंहासन बत्तीसी प्रख्यात पुस्तकें हैं। जिन्हें आज भी अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त है।
भारत की प्राचीन साहित्य पुस्तकों मे वार्ता लेख बेताल पच्चीसी पुस्तक को स्वर्गीय महाकवि सोमदेव भट्ट द्वारा दो हज़ार पाँच सौ वर्ष पूर्व लिखा गया था। और उसी साहित्य पुस्तक के अनुसार, राजा विक्रमादित्य ने बेताल को पच्चीस बार पेड़ से उतार कर ले जाने का प्रयास किया था और बेताल ने हर बार रास्ते में एक नई कहानी राजा विक्रम को सुनाई थी।
इन कहानियों मे कौन था बेताल और क्यों राजा विक्रमादित्य उसे पकड़ने गए थे?
एक तांत्रिक था जो तंत्र विद्या मे अनुष्ठान करना चाहता था ओर किसी बत्तीस लक्षण वाले स्वस्थ ब्राह्मण पुत्र की बली देने देना चाहता था। उसको इस बात की जानकारी थी की एसा करने से उसकी आसुरी शक्तियाँ और बढ़ जाए। इसी हेतु वह एक ब्राह्मण पुत्र को मारने के लिए उसके पीछे पड़ जाता है। परन्तु वह ब्राह्मण पुत्र भाग कर घने जंगल में चला जाता है और वहाँ उसे एक प्रेत मिलता है, जो ब्राह्मण पुत्र को उस तांत्रिक से बचने के लिए शक्तियाँ प्रदान करता है और वहीं प्रेत रूप में पेड़ पर उल्टा लटक जाने को कहता है यह वही प्रेत हे जो राजा विक्रमादित्य के काँधें पर दिखाई देता हे। और यह भी उसको कहता है कि जब तक वह उस पेड़ पर लटका रहेगा तब तक वह तांत्रिक उसकी हत्या नहीं पाएगा। वही बत्तीस लक्षण वाला ब्राह्मण पुत्र “बेताल” होता है।
तांत्रिक राजा विक्रमादित्य को स्वादिष्ट फल भेंट भेजता है। जिसके अंदर एक कीमती रत्न रूबी होता है।
कपटी तांत्रिक एक भिक्षुक योगी का स्वांग रचता है। और राजा विक्रमादित्य के पराक्रम और शौर्य गाथाओं को सुन कर अपना काम निकलवा लेने का जाल बिछाता है। और राजा विक्रम को यात्रा के दौरान प्रति दिन एक स्वादिष्ट फल भेंट भेजता है। जिसके अंदर एक कीमती रत्न रूबी होता है। इस भेद का पता लगाने राजा विक्रम उस भिक्षुक की तलाश करते हैं। अंततः राजा विक्रम उसे ढूंढ लेते हैं। क्योंकि उस ढोंगी तांत्रिक भिक्षुक में स्वयं बेताल को लाने की शक्ति नहीं होती इसलिए वह कुछ बहला फुसला कर राजा विक्रमादित्य से उस पेड़ पर लटक रहे प्रेत बेताल को लाने के लिए कहता है। राजा विक्रम उस तांत्रिक के षड्यंत्र को नहीं जानते थे ओर एक भिक्षुक समझ कर उसकी सहायता करने निकाल पड़ते है।
बेताल विक्रमादित्य को कहानी सुनाने लगता और यह शर्त भी रखता था।
राजा विक्रमादित्य पेड़ से बेताल को हर बार उतार लेते और उस भिक्षुक के पास लेजाने लगते। मार्ग लम्बा होने के कारण से हर बार बेताल कहानी सुनाने लगता और एक यह विचित्र सी शर्त रखता था कि पूरी कहानी सुनने के बाद यदि राजा विक्रम ने उसके प्रश्न का सही उत्तर ना दिया तो वह राजा विक्रम को मार देगा। और अगर राजा विक्रम ने जवाब देने के लिए मुंह खोला तो भी वह रूठ कर फिर से अपने पेड़ पर जा कर उल्टा लटक जाएगा।