भारत के बारे मे विदेशों मे बुराई करना राहुल गांधी की आदत बन गई हे।

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भारत के बारे मे विदेशों मे बुराई करना राहुल गांधी की आदत बन गई हे।
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राहुल गांधी ने लंदन जाकर भारत देश की राजनीति, सरकार, संघवाद, ओर विदेश मंत्रालय आदि के बारे में वक्तव्य दिये हे, यह कोई नई नहीं हैं। परन्तु प्रश्न यह यहाँ खड़ा होता है कि उन्हें विदेशों में जाकर क्या यह सब बोलना चाहिए? यदि वह भारत में रहते हुए वे सरकार की निंदा करें, यह बात तो समझ में आती है, क्योंकि वे ऐसा न करें तो विपक्ष की राजनीति का धंधा ही बंद हो जाएगा। भारत का विपक्ष इतना शक्तिहीन हो गया है कि उसके पास निंदा के अतिरिक्त ओर कोई दूसरा धंधा ही नहीं बचा है। विपक्ष पास न कोई विचारधारा है, न सिद्धांत है, न नीति है, न कार्यक्रम है, न जन आंदोलन के कोई विषय हैं। उसके पास कोई एक दिखावटी नेता भी नहीं हैं। जो नेता हैं, वे कालिदास और भवभूति के विदूषकों को भी मात करते हैं। उनकी बातें सुनकर लोग हंसने के अलावा क्या कर सकते हैं?

राहुल गांधी का यह कहना कि भारत-चीन सीमा का विवाद रूस-यूक्रेन युद्ध का रूप भी ले सकता है। ऐसा हास्यास्पद वक्तव्य जो दे दे, उसे कुछ खुशामदी लोग फिर से कांग्रेस-जैसी महान पार्टी का अध्यक्ष बनवा देना चाहते हैं। जो व्यक्ति भारत की तुलना यूक्रेन से कर सकता है, आप अनुमान लगा सकते हैं कि उसके माता-पिता ने उसकी पढ़ाई-लिखाई पर कितना ध्यान दिया होगा?

राहुल गांधी ने भारत को विभिन्न राज्यों का संघ बता दिया।

कोई जरूरी नहीं है कि हर नेता अंतरराष्ट्रीय राजनीति का विशेषज्ञ हो लेकिन वह यदि समाचार पत्र  भी ध्यान से पढ़ ले और उन्हें न पढ़ सके तो कम से कम समाचारों वाले टीवी देख लिया करे तो वह ऐसी बेसिर-पैर की बात कहने से बच सकता है। भारतीय राजनीति परिवारवाद और सत्ता के केंद्रीयकरण से ग्रस्त है, इसमें शक नहीं है परन्तु उसका विरोध करने की बजाय राहुल ने भारत को विभिन्न राज्यों का संघ बता दिया। इसका अर्थ क्या हुआ? यानी भारत एकात्म राष्ट्र नहीं है। ऐसा कहकर क्या अलगाववाद को प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है? इसी तरह पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति की तुलना भारत से करने का आश्र्य क्या है?

भारत के जो पत्रकार निष्पक्ष और निर्भीक हैं उन्हे किसी का डर नहीं।

भारत में कोई सरकार कभी अपनी सेना के संकेतों पर नाची है? यह कहना बिल्कुल ठीक है कि भारत के समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर भारत सरकार का शत प्रतिशत कब्जा है। क्या आज भारत में आपातकाल (1975-77) जैसी स्थिति है? जो पत्रकार और समाचार पत्र मालिक प्रशंसा कर रहे हैं, वे अपने स्वार्थों के कारण से हैं। जो निष्पक्ष और निर्भीक हैं, उन्हें कुछ कहने करने की हिम्मत किसी की भी नहीं है। भाजपा सरकार के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री पर घमंडी होने का आरोप भी लगाया जाता रहा है परन्तु यही आरोप तो आज कांग्रेस के नेतृत्व को बरबादी की तरफ ले जा रहा है।

भाजपा का भाग्य अच्छा हे जो उन्हे भारत मे राहुल गांधी जेसा नेता मिला।

भारत के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों पर आक्षेप करना भी उचित नहीं है। वे अत्यंत शिष्ट और उचित व्यवहार के लिए पूरे विश्व में जाने जाते हैं। कुछ भाजपा नेताओं ने राहुल के आरोपों का मुंहतोड़ जवाब देने की प्रयास भी किया है। वह तो आवश्यक था परन्तु उससे भी अधिक आवश्यक यह है कि भाजपा अपने भाग्य को सराहे कि उसे भारत मे राहुल-जैसा विरोधी नेता मिल गया है, जिससे उसको कभी कोई खतरा हो ही नहीं सकता। भाजपा को यदि कभी कोई खतरा हुआ तो वह खुद से ही होगा।

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आत्मबल द्वारा ही आतंकवाद और माओवाद पर विजय पाई जा सकती हे।

मेरा परिचय।


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